Capacitor ! Condenser

ईसा से 600 वर्ष पूर्व ग्रीस देश में स्थितिज विद्युत (static electricity) की खोज हो गई थी लेकिन यह विद्युत electricity उत्पन्न होने के कुछ देर बाद ही समाप्त हो जाती थी । इसलिए इसे एकत्रित Store करने की आवश्यकता महसूस की गई लगभग 18 वीं शताब्दी तक कन्डेन्सर ( Capacitor ) की खोज नहीं हुई थी लेकिन सन् 1746 में डच भौतिक शास्त्री वेन मुस्सेनब्रोक Van Mussenbrock ने सर्वप्रथम इसकी खोज की। पहले कन्डेन्सर ( Capacitor ) को लेडेन जार Leyden Jar कहा गया था। यह पानी से भरे ग्लास जार से बनाया गया था और स्थितिज विद्युत Static Electricity से चार्ज किया जाता था । इससे कम जगह में अधिक विद्युत को चार्ज करने की क्षमता थी । इस कारण से वैज्ञानिक वोल्टा (Volta) ने सन 1782 में इसे कन्डेन्सर ( Capacitor ) नाम दिया ।

प्रसिद्ध ब्रिटिश वैज्ञानिक माइकल फैराडे (Michael Faraday) ने 18 वीं शताब्दी के बाद विद्युत और केपेसिटेन्स capacitance की प्रकृति का निर्धारण किया तथा उसके बाद ही केपेसिटेन्स capacitance की इकाई को फैराड (Farad) नाम दिया गया ।
आजकल कन्डेन्सर को केपेसिटर ( Capacitor ) कहा जाता है। इसका कार्य विद्युत उर्जा को इकट्ठा करना तथा उसे पुन: प्रदान कर देना है अर्थात विद्युत को चार्ज और डिस्चार्ज करना है। इसके अलावा एक केपेसिटर ( Capacitor ) के अन्य कार्य निम्न प्रकार हैं.

Capacitor WORK

  1. डी. सी. सप्लाई को रोकना और A. C. को पास करना:
  2. दों विभागों को जोडना (Coupling)
  3. अवांछित फ्रिक्वेन्सियों को ग्राउन्ड करना (By Pass)
  4. किसी विभाग को वांछित सिगनल देना (Feed Through)
  5. तरंग का आकार उलटना (Shift Phase)
  6. डिले टाइम उत्पन्न करना
  7. ट्यून रेजोनेन्ट फ्रिक्वेन्सी प्राप्त करना
  8. . फिल्ट्रेशन
  9. सिगनल्स का तुलनात्मक अध्ययन करना
  10. दो विभागों में अलगाव पैदा करना
  11. मोटर स्टार्टर के रूप में

वास्तव में कन्डेन्सर ( Capacitor ) एक टंकी की तरह कार्य करता है। जिस प्रकार टंकी में पानी को एकत्रित किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार कन्डेन्सर ( Capacitor ) भी विद्युत को इकट्ठा करता है । इसे कन्डेन्सर का चार्ज होना कहते हैं। जिस प्रकार टंकी से पानी पुनः प्राप्त किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार कन्डेन्सर ( Capacitor ) में चार्ज विद्युत को पुन: प्राप्त किया जा सकता है । इसे कन्डेन्सर ( Capacitor ) का डिस्चार्ज होना कहते हैं ।

कन्डेन्सर ( Capacitor ) एक इलैक्ट्रीकल पुर्जा है जो दो मेटेलिक प्लेट्स के द्वारा बना होता है। ये दोनों प्लेट्स एक कुचालक पदार्थ, जिसे डाई इलैक्ट्रिक कहते हैं, के द्वारा एक दूसरे से अलग अलग की गई होती है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि धातु की दो प्लेटों के बीच में कुचालक पदार्थ रखकर बनाया गया पुर्जा ( Capacitor ) या कन्डेन्सर कहलाता है।इस का नाम उसमें प्रयोग किये गये डाई इलैक्ट्रिक पदार्थ के अनुसार लिया जाता है।

Capacitance ! what is capacitance

किसी कन्डेन्सर ( Capacitor ) के द्वारा विद्युत चार्ज को स्टोर करने की क्षमता, उस कन्डेन्सर ( Capacitor ) का केपेसिटेन्स ( capacitance ) कहलाता है। इसे C से प्रदर्शित करते हैं केपेसिटेन्स ( capacitance ) नापने की इकाई फैराड है परन्तु फैराड एक बहुत बडी इकाई है। इसकी छोटी इकाइयां क्रमशः किलो माइक्रो फैराड (KMFD), माइक्रो फैराड (MFD), किलो पिको फैराड (KPF), या नैनो फैराड (NF) और पिको फैराड (PF) हैं । इन इकाइयों में आपसी सम्बन्ध निम्न प्रकार है ।

capacitance unit ! केपेसिटेन्स इकाई

working principle of capacitor ! केपेसिटर का कार्य सिद्धान्त

जैसा कि पहले बताया गया है कि एक कन्डेन्सर ( Capacitor ) इलैक्ट्रीकल एनर्जी को स्टोर करने तथा बाद में इसे पुन: देने की क्षमता रखता है । इसे ही उस की चार्जिंग और डिस्चार्जिंग कहते है । एक कन्डेन्सर ( Capacitor ) को D.C. व A.C. सप्लाई देने पर अलग अलग क्रियाएं होती हैं। दोनों स्थितियों में एक इस की कार्य प्रणाली निम्न प्रकार होती है।
जब किसी कन्डेन्सर ( Capacitor ) को सप्लाई सोर्स से जोडा जाता है तो उस की दोनों पैरेलल प्लेट्स के बीच एक फोर्स (दबाव) बनता है। लेकिन इन दोनों प्लैट्स के बीच में रखे डाई इलैक्ट्रिक पदार्थ के कारण इस में से होकर धारा नहीं बह सकती । इस समय एक प्लेट पर इलैक्ट्रान्स एकत्रित होते हैं और उसका विपरीत चार्ज, जिसमें इलैक्ट्रॉन्स की संख्या, पहली प्लेट के समान होगी, दूसरी प्लेट पर उत्पन्न होंगे । इस प्रकार दोनों प्लेट्स पर एक दूसरे से विपरीत एनर्जी स्टोर हो जाती है। जिस समय कन्डेन्सर ( Capacitor ) की प्लेट्स चार्ज हो रही होती हैं, उस समय सप्लाई सोर्स से करेन्ट की खपत होती है और जैसे ही दोनों प्लेट्स के एक्रोस चार्ज का मान सोर्स के अधिकतम मान के बराबर हो जाता है, यह खपत होना बन्द हो जाती है । इस प्रकार कहा जा सकता है चार्जिंग के समय सोर्स से होने वाली करेन्ट की खपत दोनों प्लेट्स में स्टोर हो गयी । यह कन्डेन्सर ( Capacitor ) की चार्ज स्थिति कहलाती है ।
यदि कन्डेन्सर ( Capacitor ) के सिरों के एक्रोस एक डी.सी. बैटरी जोड दी जाये तो यह इस डी.सी.सप्लाई से चार्ज हो जाता है। अब यदि इस के सिरों से बैटरी को हटा लिया जाये तो कन्डेन्सर ( Capacitor ) में चार्ज सप्लाई डिस्चार्ज नहीं होगी क्योंकि दोनों प्लेटों के बीच कोई इलेक्ट्रिकल चालकता वाला रास्ता नहीं होता । इस प्रकार बैटरी को हटा लेने पर भी इस मे इलैक्ट्रिकल चार्ज स्टोर (जमा) रहता है। अब यदि इस के एक्रोस कोई लोड लगा दिया जाये तो इसके कारण एक चालक रास्ता उत्पन्न होगा और कन्डेन्सर ( Capacitor ) की एक प्लेट से दूसरी प्लेट के बीच इलेक्ट्रान्स बहने लगेंगे। यह बहाव (FLOW) तब तक जारी रहेगा जब तक कि दोनों प्लेट्स पर इलैक्ट्रान्स की समान मात्रा नहीं हो जाये यह इस की डिसचार्ज स्थिति कहलाती है इस प्रकार कहा जा सकता है कि कन्डेन्सर ( Capacitor ) के सिरों के एक्रोस डी.सी. सप्लाई देने पर यह चार्ज हो जाता है। यह चार्ज बैटरी को हटा लेने पर भी तब तक स्टोर रहता है जब तक किसी लोड के द्वारा इसे डिस्चार्ज नहीं किया जाता। यह कन्डेन्सर ( Capacitor ) का डी.सी. सिद्धान्त कहलाता है

यदि कन्डेन्सर ( Capacitor ) को A. C. सप्लाई दी जाय तो दोनों प्लेट्स की ध्रुवता (पोलेरिटी) इनपुट A. C. वोल्टेज की ध्रुवता (पोलेरिटी) के अनुसार प्रत्यावर्तीीं रूप से पोजिटिव व निगेटिव होती है। इसके परिणाम स्वरूप यह A. C. के एक हॉफ सायकल में चार्ज होगा और दूसरे हाफ सायकल में डिसचार्ज होगा। पहले हाफ सायकल के द्वारा चार्ज इस के सिरों पर जब दूसरा विपरीत हाफ सायकल आता है तो यह विपरीत हाफ सोयकल इस को डिसचार्ज करता है । यह क्रम लगातार चलता रहता है । इसके कारण इस के सर्किट में A.C, का बहाव(Flow) होता है जबकि वास्तव में दोनों प्लेट्स के बीच के डाईइलैक्ट्रिक मेटेरियल के कारण कोई इलैक्ट्रॉन करेन्ट नहीं बहती है । इस प्रकार यह A. C. करेन्ट के बहाव में एक प्रकार का विरोध उत्पन्न करता है जिसे इम्पीडेन्स कहते हैं। जो कन्डेन्सर ( Capacitor ) के मान और A. C. की फ्रीक्वैन्सी के अनुसार उत्पन्न होता है एक कन्डेन्सर ( Capacitor ) को दी गई A. C. वोल्टेज और इसकी आउटपुट से प्राप्त A. C. करेन्ट के बीच 90° का फेस अन्तर होता है । अर्थात इस के सिरों पर A.C. का जो फेस दिया जाता है, आउटपुट में उससे विपरीत फेस प्राप्त होता है

यह कन्डेन्सर ( Capacitor ) की A. C. थ्योरी (सिद्धान्त) है इस प्रकार एक इन के सिरों पर डी.सी व एसी, देने पर अलग अलग क्रियाएं होती हैं

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